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आलेख : सेहत का महत्व — लेखक : राजेश कुमार ‘राज’

 

सेहत का मनुष्य के जीवन में अत्यधिक महत्व है. इस महत्व को दृष्टिगत रखते हुए ही कहावतें प्रचलित हैं. जैसे ‘जान है तो जहान है’, ‘सबसे बड़ा सुख निरोगी काया’, ‘स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन निवास करता है’ इत्यादि. इसलिए प्राचीन काल में ही हमारे ऋषि-मुनियों ने आयुर्वेद, योग और अध्यात्म के संयोग से स्वस्थ रहने के लिए ढेरों पद्धतियों का निर्माण कर मानव जाति को उपहार स्वरुप प्रदान किया. किन्तु आधुनिकता की अंधी दौड़ में हम अपनी आयुर्वेद, योग और अध्यात्म की थाती को भूल गए और प्रकृति विरुद्ध आचरण करने लगे जिसका हमारी सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ना अवश्यम्भावी था. आज हम भांति-भांति के रोगों से पीड़ित हैं. विश्व में हमारा देश मधुमेह की राजधानी के रूप में ख्याति प्राप्त कर चुका है. कैंसर के रोगियों की संख्या दिन दूनी रात चौगुनी की गति से बढ़ रही है.

इस समस्या से लड़ने के लिए हमारे देश में दो तरह की स्वास्थ्य सेवाएँ उलब्ध है. पहली सरकारी सेवाएँ तथा दूसरी निजी सेवाएँ. बढती जनसँख्या के अनुसार स्वास्थ्य सेवाओं के बजट में जितनी आनुपातिक वृद्धि अपेक्षित थी वह नहीं हुई. संसाधनों के कमी के कारण सरकारी सेवाएँ लचर हैं. दूसरी तरफ निजी स्वास्थ्य सेवाएँ महँगी होने के कारण आम आदमी की पहुँच से बाहर हैं.

अब आम आदमी क्या करे? हमें पुनः अपनी जीवनचर्या को संतुलित और प्रकृतिपरक बनाने की जरुरत है ताकि हम कम से कम बीमार पड़ें. ‘बैक टू बेसिक्स’ का फार्मूला अपनाने की आवश्यकता है.

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