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लघुकथा – बेटी एक आत्मानुभूति — लता शर्मा तृषा

 

जैसे ही नर्स ने बाहर आ बताया बेटी हुई है सासु मां के गुस्से का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया लतिका के लिए जमाने भर की बद्दुआ मुंह से निकलने लगा।
लतिका को दो बेटी पहले से ही थी और अब तीसरी आ गई थी,बेटे के चाह में घर वालों के दबाव के चलते तीसरे गर्भ धारण की थी । करीब साल भर बाद सासु मां का देहांत हो गया किन्तु जब तक सासु मां रहीं तीसरी बेटी के तरफ आँख उठा देखी भी नहीं लतिका जैसी अपराधी तो ब्राह्माण्ड में कोई था ही नहीं,।

लतिका व पतिदेव दोनों को तीन तीन बेटी होने का कभी दुख नहीं हुआ बल्कि बेटी एक अलग तरह के सुखद आत्मानुभूति का अहसास दिलाती उन्हें, तीनों बेटियां कुशाग्र बुद्धि की समझदार निकली।मां पिता पर जान छिड़कने वाली, हर जरूरत बिना बताए समझने, पूरी करने वाली। लतिका को अपनी बेटियों पर गर्व होता है, एक अद्भुत आत्मानुभूति से उसका मन भरा रहता है।

लता शर्मा तृषा

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