पुनर्विवाह — लता शर्मा तृषा

स्वाती सुहाग सेज में बैठी पतिदेव का इंतजार कर रही थी मन में हजारों तरह की शंका-आशंका आ जा रहे थे पता नहीं पतिदेव कैसे होंगे, स्वभाव, व्यवहार आदि ।मगर जब समर से मुलाकात हुई तो उसका आशंकित मन शांत हो गया , धीरे-धीर घर वालों व समर की आदत, व्यवहार से परिचित होने से आस्वस्थ भी वह अपने को बहुत भाग्यशाली मानती जो ऐसे पति व ससुराल मिला है मगर…
नियति को कुछ और मंजूर था ।
अभी हाथों की मेंहदी धुली भी नहीं थी कि शादी के महज छै माह बाद पच्चीस बरस की उम्र में ही विधवा हो गई ,सुबह हंसते मुस्कुराते घर से काम पर निकले समर की लाश शाम को एम्बुलेंस पर आया रोड़ एक्सिडेंट में आन द स्पॉट उनकी मौत हो गई थी।
पिता पन्द्रहवें दिन अपने साथ मायके ले आये , ससुराल वाले कुछ दिन हालचाल पूछते रहे फिर भूल गए। धीरे धीरे दो साल बीत गए स्वाती खुद को संभाल एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करने लगी।घर वालों के समझाने ,जिद पर पुनर्विवाह को मान गई।
एक बार फिर शंका, आशंका के झंझा में उसका मन उलझ गया था पता नहीं नरेंद्र व उसके घरवाले कैसे होंगे विधवा से शादी कोई अड़चन पैदा न करें और नींद आंखों से दूर हो गई थी।
सहेलियां दिन भर ठिठोली करती रहीं , स्वाती उनकी बातों पर कभी मुस्कुराती कभी लजाती कभी कुछ सोच में गुम हो चुप । दिन बीत गया रात सभी निद्रा में मग्न मगर स्वाती की आँखों से में नींद। कहाँ।कल बारात आयेगी वो फिर दुल्हन बनेंगी।
ऐसे ही घर में मेहमानों की गहमा गहमी ऐसे ही सजे थे मंडप सखियां भी यही थीं चुहलबाज़ी भी यही मगर तब सभीके चेहरों में एक अलग उमंग उत्साह था तब हल्दी लगी थी ,सारे रस्म रिवाज बड़े उत्साह से हुए थे,स्वाती की आँखों के सामने सभी चित्र चलचित्र बन आते जा रहे थे।
भाग्य व होनी के आगे सब मौन रह जाते हैं स्वाती भी भाग्य का लिखा जान मौन रही।
लता शर्मा तृषा